Wednesday, October 5, 2011

क्या लिखूं अब तो शर्म मेरी कलम को भी आती है,

क्या लिखूं अब तो शर्म मेरी कलम को भी आती है,
कुछ लोगो की शर्म पता नहीं कहाँ चली जाती है,

मैं-मैं और सिर्फ मैं के चक्कर में भूल सब सब कुछ जाते हैं,
जाना सबको उसके पास ही है ये वो समझ ना पातें हैं,
दुनिया का कितना भी बहलाओ, अंतर्मन सब जानता है,
सच को दीवारों में चिन्वाओ पर एक दिन वो दिख जाता ही है,
क्या लिखूं अब तो शर्म मेरी कलम को भी आती है.........

प्रधानमंत्री हमारा सरदार है, लगता था कुछ असरदार है,
कुर्सी ऐसी इसको भाई, yes madam yes madam करके इज्ज़त इसने अपनी गवाई,
कलयुग का ध्रितराष्ट्र बना ये, अनजान बना ये रहता है,
लुटती रहती है देश की इज्ज़त, ये बस सुनता रहता है.......
क्या लिखूं अब तो शर्म मेरी कलम को भी आती है.........

1 comment:

  1. मनमोहन हमारे, बिलकुल बेचारे,
    समझाया इन्होने देखो मैंने कुछ नहीं किया,
    जैसा मैडम ने बोला मैंने हाँ कर दिया,
    फिर भी ना जाने oppositions ने इनकी
    रो रो कर देखो ये तो हारे,

    कभी २G का चक्कर चला है,
    कभी ३G ने इनको जकड़ा है,
    कभी common-wealth games कभी कलमाड़ी,


    पर कोई ना कोई तो इनको पत्थर रोज मारे,

    ReplyDelete